कोरोना नामक महामारी ने एक पल में ही सब उथल-पुथल कर दिया है। हम हमेशा यही सोचते रहते हैं कि इस कोरोना काल में क्या होगा! हमारा जीवन कैसा होगा! हम सबके मन में एक भय सा बैठ गया है।

हम सभी का जीवन प्रभावित हो रहा है पर इससे सबसे ज्यादा बच्चों के भविष्य पर प्रभाव पड़ रहा है। लंबे समय से विद्यालय बंद है इससे उन मासूम नौनिहालों की शिक्षा दीक्षा पर विशेष प्रभाव पड़ रहा है। वह बाहर भी नहीं जा पा रहे हैं। ना ही खेल पा रहे हैं । कोरोना महामारी के वजह से ना तो उनके पास किताबें हैं और ना ही हम शिक्षक विद्यालय जाकर उन्हें पढ़ा पा रहे हैं। एक शिक्षक होने के नाते मन में कई सारे सवाल थे कि स्कूलों के ना चलने की वजह से क्या बच्चों की पढ़ाई का रुकना उचित है! बहुत ही समस्याएं थी क्या करूं, कैसे करूँ! तभी हमारे मन में तकनीकी के उपयोग का विचार आया। मैंने सोचा कि मोबाइल से भी यह शिक्षा दीक्षा का कार्य हो तो अच्छा होगा पर दूसरी तरफ गाँवों की परिस्थिति का भी विचार आया। मेरा विद्यालय सिंदुरिया गांव में स्थित है जहां पर सभी अभिभावकों के पास एंड्राइड मोबाइल नहीं है। गांव में कहीं-कहीं बिजली भी नहीं है। कुछ अभिभावकों के पास एन्ड्रॉयड मोबाइल है तो नेट पैक की समस्या थी। सभी बच्चों का मोबाइल नंबर मेरे पास नहीं था। लॉक डाउन की वजह से वहां जाकर मोबाइल नंबर लेना भी संभव नहीं था। ऊपर से विद्यालय पर अकेले होने के कारण भी इस में कठिनाई आई। मुझे याद आया कि कुछ बच्चों का नंबर मैंने नोट किया था। सच ही कहा गया है कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है।


दूर मंज़िल है तेरी, तू अकेला है माना,
फिर भी मगर मुश्किलों से, राही ना तू हार जाना।”


फिर मैंने दो तीन अभिभावकों से फोन पर बात की और अभिभावकों को ऑनलाइन शिक्षण के बारे में बताया कि अब कोविड-19 के कारण हम सभी को एक दूसरे का सहयोग करके इस ऑनलाइन शिक्षण को सफल बनाना होगा। मैंने उनसे पूछा कि क्या आप हमारा सहयोग कर सकते हैं! आप सभी को, अपने बच्चों को तथा दूसरे अभिभावकों को प्रेरित करना होगा कि वह इस ऑनलाइन शिक्षण में सहयोग करें। उन्होंने कहा बिल्कुल हमें तो खुशी होगी कि हमारे बच्चे पढ़े और आगे बढ़े।

मैं अपने ऑनलाइन क्लास के सफलता के लिए सभी अभिभावकों और बच्चों के योगदान के लिए बहुत-बहुत आभारी रहूँगी। मैंने उन अभिभावकों से उनके आस पड़ोस में रहने वाले बच्चों का नंबर मांगा। धीरे धीरे अभिभावकों से बात करके बाकी बच्चों का नंबर प्राप्त किया। मैंने हमारी एसएमसी सदस्य, जिन की तीन बेटियां हमारे स्कूल में पढ़ती है, उनसे मैंने बात की और कहा कि वह अपने आस-पास के बच्चों को ऑनलाइन शिक्षण में जोड़ने के लिए उनका नंबर दें। उन्होंने मेरी बहुत सहायता की। मैंने उच्च प्राथमिक विद्यालय सिंदुरिया का ऑनलाइन क्लास मात्र 5 बच्चों को लेकर प्रारंभ किया। फिर धीरे-धीरे कारवाँ बढ़ता चला गया। इसमें बच्चे भी हमारा सहयोग कर रहे थे। अपने दोस्तों का नंबर देकर, हमारी रसोईया ने भी 
हमारा हर पल सहयोग किया और सब के सहयोग से आज 53 बच्चे मोबाइल से शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।

जिन बच्चों के पास एंड्राइड मोबाइल नहीं था, उन्हें मैंने फोन करके सूचना दी। ऐसे बच्चे जिनके पास एंड्रॉयड मोबाइल था, उनके आस-पास रहते थे, उन्हें मैंने कहा कि वह दिए गए कार्य को कॉपी में नोट कर और होमवर्क करके फोटो भेज दिया करें और ऐसा ही हुआ। ऑनलाइन शिक्षण के लिए बनाए गए Study materials ग्रुप तो बन गया, चुनौती आई कि अब ग्रुप में पढ़ाई हेतु क्या मटेरियल भेजा जाए, जो बच्चों के अनुसार हो सरल हो और जिसे बच्चे समझे और उन्हें मजा भी आए। मैंने देखा कि मैंने जब शुरुआत में पढ़ाने के लिए कुछ साधारण चीजें भेजी तो उन्होंने उतने उत्साह के साथ उसे हल करके नहीं भेजा था। मैंने गणित के प्रश्न भी भेजें और उससे हल करके कॉपी पर भेजा था, पर मैंने देखा कि अधिकतम बच्चों को समझने में कठिनाई हो रही थी क्योंकि कक्षा में हम बच्चों के सामने पढ़ाते हैं और अगर उन्हें कोई समस्या होती है तो हम उन्हें वहीं पर बता देते हैं पर ऑनलाइन क्लास में ऐसा नहीं था।