“कोरोना महामारी “के कारण समूचे भारत में भारत सरकार व सभी राज्यों ने 25 मार्च से सम्पूर्ण लॉकडाउन लागू किया था। मध्यप्रदेश में तब वार्षिक परीक्षा का दौर चल रहा था। तभी अचानक परीक्षाओं का रुकना एवं स्कूलों का बंद होना बच्चों के लिए अप्रत्याशित घटना थीं। बच्चें , पालक व शिक्षक सभी शासन -प्रशासन के निर्देशों के पालन में अपने -अपने घरों में सीमित हो गये। बच्चें जो हर घर के आंगन की फुलवारी होते हैं ,बच्चें जो स्कूल के केंद्र बिंदु होते हैं, वे अपने परिवार के साथ लॉक थे।



देश – विदेश में कोरोना के बढ़ते आंकड़े हम सभी को समय की भयावहता को दर्शा रहें थे। इन सब के बीच था ” बचपन ” जो पचपन की उम्र के अनुभव से अनिश्चित था। मेरा विद्यालय 2009 से एकल शिक्षकीय हैं। 2009 में अपने साथी शिक्षक के स्वैछिक स्थान्तरण के बाद से मैं अकेला प्रभारी शाला प्रधान व शिक्षक के रूप में शाला विकास के कर्तव्य में लीन हूँ। मेरा विद्यालय सुदूर अंचल में स्थित वनग्राम हैं। यहाँ की शतप्रतिशत आबादी अनुसूचित जनजाति की हैं जो कि सीमित कृषि व मजदूरी पर निर्भर हैं। वर्षाकाल की फसल के बाद अधिकांश परिवार मजदूरी हेतु गुजरात पलायन करते हैं, जिससे घर में रहते हैं बूढ़े व बच्चें!

लॉक डाउन के बाद सबसे बड़ी समस्या थीं- बच्चों को अविरल शिक्षा से जोड़े रखना! परंतु ग्राम में आज भी केवल 2 घरों में टेलीविजन हैं। मैं स्वयं चिंतित था कि निजी स्कूल तो बच्चों को स्मार्ट मोबाईल , लेपटॉप, टेबलेट, PC आदि माध्यम से बच्चों को “कोरोना” त्रासदी के मध्य भी शिक्षा को अपने बच्चों तक पहुँचा रहें थे, परंतु हम सुख-साधन से विहीन सुदूर ग्रामीण अंचल में आधुनिक साधनों के बिना कैसे बच्चों तक शिक्षा ज्ञान पहुँचाया जाए?

जब मैंने अपने VER सर्वे रजिस्टर से पालको के मोबाइल नम्बर में से स्मार्ट मोबाईल वाले पालको को चुना तो केवल 2 पालक ऐसे थे, जो स्मार्ट मोबाइल चलाते थे। अब work from home के समय मे बच्चों को घर में शिक्षा के प्रति क्रियाशील रखने के लिए हमारे पास ऑनलाइन प्लेटफार्म, ई-लर्निंग व दूरदर्शन ही एक मात्र विकल्प थे। इस बीच मध्यप्रदेश शासन द्वारा “डीजीलेप- शिक्षा आपके द्वार “कार्यक्रम की शुरुवात की गई। अब मेरे मन में भी शासन की अनुमति के बाद हिम्मत आ गईं ।


डीजीलेप कार्यक्रम के अंतर्गत whatsapp ग्रुप के माध्यम से सभी पालको को जोड़कर प्रतिदिन उन्हें राज्य शिक्षा केंद्र से प्राप्त ई-लर्निंग मटेरियल के कक्षा वार लिंक को बच्चों के whatsapp ग्रुप में सेंड करना था, परंतु हमारे पास अब भी समस्या थी बच्चों के पालको के पास एंड्रॉय मोबाईल का अभाव ! तब मैंने चिंतन कर उच्च कक्षाओं में पढ़ने वाले अलग अलग बसाहट में रहने वाले बच्चों से संपर्क किया, जिनके पास एंड्राइड मोबाईल थे। उन्हें बच्चों तक डीजीलेप सामग्री को पहचाने हेतु माध्यम बनाकर उनका whatsapp ग्रुप बनाकर, उन्हें अपने भाई बहनों का सहयोग करने का अनुरोध किया। हमारे विद्यालय के भूतपूर्व बच्चों ने काफ़ी समझाने पर हामी भरी। उन्होंने ग्राम में बच्चों को मोहल्ले वॉर शिक्षण सामग्री को प्रसारित करने में सहयोग किया। हालांकि उनके कार्य में काफी बाधाए थीं। बच्चो को एक स्थान पर इकठ्ठा करना, पालको द्वारा बच्चों को पहुँचाना, डाटा पैक व नेटवर्क प्रॉब्लम, ग्राम में लाइट की अत्यधिक कटोती होना- उक्त सभी समस्याओं को दूर करने हेतु मैंने ग्राम प्रधान श्री वेर सिंह भाभर व शाला प्रबंध समिति की अध्यक्षा श्रीमती अनिता भाबर व mid day meal की रसोइयनो श्रीमति सोना चौहान, बाईजा चौहान, जमना भाभर को व्यक्तिगत फोन कर बच्चों व उनके पालको को मोटिवेट करने हेतु प्रेरित किया। साथ ही सहयोगी पालको को भी व्यक्तिगत फोन कर बच्चों को अपने घर की बसाहट में सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए शिक्षण के प्रति प्रेरित किया।



बिजली विभाग के एरिया लाइनमैन श्री हरेसिह जी संपर्क कर कम से कम कटौती का निवेदन किया। साथ ही जिन बच्चों ने डीजी लेप शिक्षण में सहयोग किया उनके डाटा रिचार्ज भी किये। अनलॉक 1 में मैंने बच्चों के घर जाकर पालको के पास उपलब्ध जिओ मोबाइल हेंडसेट में, जिसमें WhatsApp ग्रुप चलाया जा सकता हैं, उन्हें भी प्रेरित किया, जिससे आज हमारे शैक्षणिक ग्रुप में 44 सदस्य हो चुके हैं जो शिक्षा दूत बनकर कोरोना काल में शिक्षा को घर घर पहुचाने में सहयोग कर रहे है। 


इस कोरोना कॉल में MDM वितरण भी बंद था तब शासन के निर्देश अनुसार घर घर बच्चों तकआवंटित खाद्यान गेंहू व चावल की का वितरण सुनिश्चित किया तथा सभी को व्यक्तिगत व WhatsApp ग्रुप के माध्यम से सोशल डिस्टेंस, मास्क, साबुन से हाथ धोने आदि के बारे में जागरूक किया।



प्रवीण आमले
प्राइमरी/मिडिल स्कूल कोडी
ब्लॉक- गांधारी, जिला- धार, मध्य प्रदेश

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