विद्यालय विकास के लिए समर्पित संत

एक अच्छा शिक्षक वही है जो अपने शिष्य की कल्पना को सच में परिवर्तित कर सकें, उसके सपनों को नई उड़ान दे सकें, उसे समझ सके और उसे अपने सपने के पथ पर अग्रसर कर सकें। आज हम ऐसे ही एक शिक्षक के बारे मे जानने जा रहे हैं जिनका नाम है संत कुमार सहनी। इन्हें इस वर्ष 2020 के राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

बेगुसराय, बिहार के खरमौली उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय मे हेडमास्टर के पद पर कार्यरत रहते हुए इन्होंनेे विद्यालय में भौतिक संसाधनों के विकास को खासा महत्व दिया है और नवाचार की नई विधियों को अपनाया है।

अतिक्रमण से छुड़ाकर किया विद्यालय का विकास

सन् 2004 में पहली बार प्रधान अध्यापक के रुप में जब संत कुमार सहनी विद्यालय आये, उस समय विद्यालय में केवल 4 कक्षाएं थी और विद्यालय का कुछ क्षेत्र अतिक्रमित था। उस समय विद्यालय में नामांकित विद्यार्थियों की संख्या भी केवल 123 थी। ऐसी परिस्थिति में छात्रों की शिक्षा में रुचि जागृत करने व विद्यालय का विकास करने का सबसे उत्तम उपाय था भौतिक विकास। अतः संत कुमार सहनी के निर्देशण में यह कार्य प्रारम्भ हुआ जिसके फल स्वरूप आज विद्यालय में छात्रों के लिए कूल 30 कक्ष है। साथ ही  विज्ञान प्रयोगशाला, संग्रहालय, पुस्तकालय व कंप्यूटर लैब भी है।सहनी जी ने अपने प्रयासों से विद्यालय की अतिक्रमित  जमीन को भी विद्यालय के विकास के उपयोग में ले आया है।

स्कूल के विकास में लिया सामाजिक सहयोग 

सहनी जी के अनुसार शिक्षा जीवन में अति आवश्यक है। शिक्षा से ही उन्नति की ओर पहला कदम रखा जाता है। गावों के विकास रूपी ताले को शिक्षा की चाबी से ही खोला जा सकता है। इसलिए उन्होंने शिक्षा को एक नये मुकाम तक पहुँचाने के लिए गाँव वालों का ही सहयोग लिया। प्रारम्भिक रूप से  सहनी जी ने बच्चों के अभिभावकों को शिक्षा से जोड़ा। इस कार्य के लिए उन्होंने घर-घर जाकर अभिभावकों से संपर्क किया व शिक्षा की महत्ता और फायदे समझाएं। ना केवल अभिभावकों को परंतु शिक्षकों को भी उन्होंने नए ढंग से प्रशिक्षित किया जिससे अधिक से अधिक बच्चों को स्कूल की ओर आकर्षित करने का कार्य आसानी से किया जा सकें। इसके फलस्वरूप धीरे धीरे स्कूल में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ने लगी अधिक नामांकन होने लगे और आज की तारीख में विद्यालय में कुल 1336 छात्र-छात्राएं नामांकित है।

आज की तारीख में विद्यालय के पास इतना व्यापक सामाजिक समर्थन है कि विद्यालय में कोई उत्सव का आयोजन होता है तो गांव वाले उसमें अपना पूरा सहयोग देते हैं। जैसे स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के आयोजन में गांव वाले अपनी ओर से दूध चावल या शक्कर स्कूल को प्रदान करते हैं जिससे आयोजित कार्यक्रम हर्षोल्लास के साथ संपन्न हो सके। दो बार उत्कृष्ट विद्यालय का सम्मान पा चुके इस विद्यालय में कंप्यूटर की कमी थी जो कि अब जन सहयोग से पुरी हो चुकी है। 

विद्यालय में नवाचारों की शुरुआत प्रातः काल चिंतन सभा से ही हो जाती है। इसमें प्रतिदिन छात्र-छात्राएं संविधान की शपथ लेते है, गीत गाते हैं, राष्ट्रगान गाते हैं, कविताएं व समाचार सुनाते हैं। यह चिंतन सभा का लक्ष्य प्रातः काल से ही बच्चों को उत्साहित करना व कक्षाओं के लिए तैयार व तत्पर करना होता है। सहनी जी ने शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए विद्यालय में कई प्रकार के नवाचार किये है और यह नवाचार भी एक कारण है छात्रों की शिक्षा के प्रति बढ़ती रुचि का। 

संग्रहालय के द्वारा संस्कृति से संगम

सहनी जी ने नवाचार के रूप में  विद्यालय में इस संग्रहालय का निर्माण करवाया है  जिसमें  राज्य की  लुप्त होती चीजों को  संग्रहित करके रखा गया है। इसके अंतर्गत  संग्रहालय में  लुप्त होती अनाज के फसलों के दाने, पुराने सिक्के,  आभूषणों आदि को संग्रहित किया गया है। इसका उद्देश्य  छात्रों को  अपनी संस्कृति से जुड़े रखना है। विद्यालय संग्रहालय को देखकर, इसे एक बेहतरीन नवाचार बताते हुए बिहार पाठ्य पुस्तक प्रकाशन निगम के अधिकारी संजय कुमार व कार्यक्रम अधिकारी राजकमल कुमार ने विद्यालय व संग्रहालय की बहुत प्रशंसा की है।

स्वयं पढ़ने से लेकर पढ़ाने तक

सहनी जी बच्चों की पढ़ने की शैली और क्षमता पर भी विशेष ध्यान देते हैं। इसके लिए भी उन्होंने कई नवाचार किये हैं। उनका मानना है कि तीसरी से पांचवी तक की कक्षाओं में हर विद्यार्थी को अच्छी तरह से पढ़ना आ जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त विद्यालय में कहानियां लिखने व सुनाने में भी अधिक जोर देते हैं।

संत जी का मानना है कि खुद पढ़ने वाला शिक्षक ही पढ़ा सकता है। बच्चो को शारीरिक दंड देना बाल अधिकार का हनन है। लोगों को बाल अधिकारों से अवगत कराने हेतु उन्होंने एक सेमिनार का भी आयोजन किया था, जिसके जरिए उन्होंने बच्चों को शिक्षित करने की सही शैली व उन पर पढ़ाई का बोझ ना डालने पर छोड़ दिया था। वे स्कूल में सदैव नई प्रतियोगिताएँ आयोजित  करते रहते हैं, जैसे की कविता एकांकी, छात्रवृत्ति परीक्षा, दिनकर के साहित्य सर्जन पर गोष्टी, प्रेमचंद का साहित्य, राष्ट्रीय आंदोलन से प्रभावित निर्माण के लिए वैज्ञानिक सोच जरूरी व गणित मेला जिससे कि बच्चों में नवाचार व नई चीज़ों को सीखने व समझने की ललक बढ़ती है।  साथ ही साथ  बच्चों का शारीरिक ,मानसिक व आध्यात्मिक विकास बढ़ता है। इसी अवसर पर जिले के डीईओ ने कहा कि – “जिले में संत कुमार जी व विनय कुमार जी जैसे शिक्षक प्रेरणा का स्त्रोत है और जिले के अन्य स्कूलों में शैक्षणिक माहौल बनाने के लिए इनकी सेवाएं ली जाएगी।”

मध्यान्ह भोजन पर सभी का अधिकार

विद्यालयों में  मध्यान्ह भोजन  केवल  माध्यमिक शाला तक  प्रदान किया जाता था, परंतु सहनी जी ने  बड़े बच्चों के लिए भी इस समय  अल्पाहार प्रदान करने की एक योजना अपनाई है। प्रतिदिन ₹1 प्रति छात्र खर्च में अब नौंवीं व दसवीं के छात्र शाला में ही मुंहडी व भुजिया खाते हैं। संत कुमार जी ने यह बताया कि बरबीधा प्लस टू हाई स्कूल में पहले से ही यह प्रोग्राम चल रहा है जिससे प्रेरणा लेकर उन्होंने अपने स्कूल में भी इस प्रोग्राम की शुरुआत की। इससे यह पता चलता है कि संत जी हमेशा नई चीजों को समझने और करने में विशवास रखते है। वे अपनी रूढ़िवादी सोच के साथ नहीं चलते। 

सुनहरे भविष्य का निर्माण

संत जी समझते है कि उनका कार्य केवल बच्चों को आठवीं या दसवीं तक अच्छी शिक्षा प्रदान करके खत्म नहीं हो जाता। बल्कि यह उन्हीं की जिम्मेदारी है कि वह अपने छात्र-छात्राओं को उज्जवल भविष्य की राह दिखाएं। अतः प्रत्येक वर्ष अपने विद्यालय से पास आउट होने वाले विद्यार्थियों के लिए वे दीक्षांत समारोह आयोजित करते हैं जिसमें छात्रों की करियर काउंसलिंग की जाती है और उन्हें इस बात से अवगत कराया जाता है कि उन्हें भविष्य में किस ओर जाना है।

शैक्षणिक उपलब्धियाँ 

संत कुमार सहनी जी के प्रयासों व परिश्रम का फल  उनके छात्रों  की कामयाबी के रूप में  देखा जा सकता है। मैट्रिक परीक्षा में उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय खरमौली के 6 बच्चे टॉप 10 मे शामिल हुए और वहीं के छात्र अमित कुमार ने 462 अंक लाकर प्रखर में पहला व जिले में दूसरा स्थान प्राप्त किया। टॉप 10 में 6 बच्चों का शामिल होना यह बताता है कि इस स्कूल में उत्तम शिक्षण हेतु सारी सुविधाएं हैं और बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए अच्छे शिक्षक भी हैं। इस स्कूल के बच्चों के बेहतरीन प्रदर्शन के साथ 89% परीक्षा परिणाम दिखाया है। 

खेलकूद को विशेष महत्व

स्कूल के बच्चे पढ़ाई में ही नहीं बल्कि खेलकूद प्रतियोगिता में भी बाकी स्कूलों से आगे है। विद्यालय की छात्रा अदिति ने शतरंज के खेल में राष्ट्रीय स्तर पर पहला स्थान पाया है। खेलकूद के क्षेत्र में बच्चे लंबी ऊंची कूद प्रतियोगिता में पहला स्थान पाकर जिला स्तरीय प्रतियोगिता में भी शामिल हुए हैं । वॉलीबॉल प्रतियोगिता मे भी छात्रों ने  अविस्मरणीय प्रदर्शन करके  स्कूल को गौरवान्वित किया है। निष्कर्षत: विद्यालय के बच्चे सभी क्षेत्र में आगे है। इन सब का श्रेय संत जी को जाता है, क्योंकि उन्होंने ही इस स्कूल पर इतना ध्यान दिया है कि आज यह स्कूल सभी क्षेत्र में बाकी स्कूलों से आगे है।

 छूट ना जाए कोई हाथ

संत जी के इसी हौसले के कारण उनके एक छात्र गौतम ने दिव्यांग होने के बावजूद बहुत सी उपलब्धियां पाई है। उसे इस बार देश का सर्वोच्च बाल पुरस्कार ‘बाल श्री’ से सम्मानित किया जाएगा। इसी तरह उसने राष्ट्रीय प्रतिभा खोज में भी अपना स्थान बनाया। वो शुरुआत से वैज्ञानिक बनना चाहता है। उसकी यह प्रतिभा संत जी के प्रयासों का ही परिणाम है। इससे उनके बारे में यह पता चलता है कि वे हर तरह के छात्र को आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। वे और भी दिव्यांग बच्चों के लिए अलग अलग तरह की प्रतियोगिता अपने विद्यालय में आयोजित करते रहते हैं। 

सबके साथ से सुनियोजित होता विकास

संत जी बहुत ही सुशिक्षित व नए विचारों वाले प्रधानाध्यापक हैं।  उनकी सोच और निर्देशन में ही उनके स्कूल का कायाकल्प संभव हो पाया है। किस प्रकार शिक्षकों, छात्रों और अभिभावकों को साथ लेकर शिक्षण की शैली, गुणवत्ता और उससे मिलने वाले  परिणाम को सुधारा जा सकता है, यह संत जी से सीखने वाली बात है। वे अपने विद्यालय में छात्र रूपी कच्ची मिट्टी को पके हुए घड़े का आकार प्रदान करते हैं। इसी तरह हर विद्यालय को संत जी की ही भांति बच्चों को समझना एवं उन्हें उनकी लक्ष्य प्राप्ति में अग्रसर करना चाहिए।

sarkarischool.in संत कुमार सहनी जैसे भारत के भविष्य के रचयिता, उनके प्रयासों और समर्पण को सलाम करता है। सरकारी सबसे असरकारी ।

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About the author: Abhishek Ranjan

Abhishek Ranjan is the Founder and Director of SarkariSchool.IN

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