उसूलों और सिद्धांत की पक्की विद्या पाठक जी

  • प्रीति श्रीवास्तव

जब मैं अपने स्टूडेंट्स को बड़ी बहन जी की तरह व्यवहार करती हूं और वह मेरे आस-पास मंडराते हैं, फिर मुझे समझ मे आता है अपने प्रिय शिक्षक का दिया वह मंत्र जो उन्होंने अमूर्त रूप से हमें दिए कि जब तक हम एक एक बच्चे से नहीं जुड़ेंगे पूरे विद्यालय से कैसे जुड़ पाएंगे।

शिक्षक दिवस एक ऐसा दिन है जब हर किसी को अपने स्कूल तथा टीचर्स की याद आ ही जाती हैं । मैं भी अपनी इन आदरणीय शिक्षिका/प्रधानाध्यापिका स्वर्गीय विद्या पाठक जी जिन्हें हम सब बड़ी बहन जी बुलाते थे हमेशा याद करती हूँ।


मेरे दिल दिमाग पर उनकी अमिट छाप पड़ी है। वह एक आदर्श प्रिंसिपल होने के साथ-साथ एक आदर्श व्यक्तित्व भी थीं। जहां अन्य अध्यापिकाएं खुद को मेंटेन करके आती थी, बड़ी बहन जी सीधे पल्ले में एक बड़ी सी बिंदी के साथ! बस इतना ही था उनका मेकअप! असली सौंदर्य तो उनकी कर्मठता, अनुशासन और विद्वत व्यक्तित्व था, साथ ही नियम की इतनी सख्त कि हर कोई विद्या पाठक के नाम से ही घबराता था।

लोगों को हमारे कॉलेज के नियमो का उल्लंघन करने से डर लगता था। विद्या पाठक बहन जी ने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से कॉलेज का नाम इतना किया था कि उस समय अपनी बेटियों को उस कॉलेज में पढ़ाना लोग फ़ख्र की बात समझते थे। उसूलों और सिद्धांत की पक्की हम सब की बड़ी बहन जी ने छोटे से ज्ञानपुर के इस स्कूल को जनपद के सर्वाधिक लोकप्रिय स्कूल का दर्जा दिलाया, जहां एडमिशन के लिए कक्षा 6 के साथ-साथ 9 में भी कुछ सब्जेक्ट के लिए टेस्ट होते थे।

तमाम कार्यों की व्यस्तता के बावजूद बड़ी बहन जी जो भी कक्षा खाली देखती, उसमें जाकर वही विषय पढ़ाने लगती। पढ़ाई के साथ साथ एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज पर भी विद्यालय में उतना ही फोकस होता, जितनी गंभीरता से पढ़ाई पर होता था। अच्छे से याद है मुझे जब मैं 7th में थी, मुझे मेरी क्लास में आकर अचानक से मेरी इंग्लिश की कॉपी मांगी और चेक करने पर शाबाशी के साथ हैंडराइटिंग के लिए भी क्लास में तारीफ कीं। यह मेरे लिए बहुत बड़ा पुरस्कार था।

अनुशासन के साथ साथ शिक्षकों का प्रोत्साहन, प्यार और अवधान एक बच्चे के लिए कितना जरूरी होता है यह शिक्षक बनने के बाद एहसास हुआ। जब मैं अपने स्टूडेंट्स को बड़ी बहन जी की तरह व्यवहार करती हूं और वह मेरे आस-पास मंडराते हैं, फिर मुझे समझ मे आता है अपने प्रिय शिक्षक का दिया वह मंत्र जो उन्होंने अमूर्त रूप से हमें दिए कि जब तक हम एक एक बच्चे से नहीं जुड़ेंगे पूरे विद्यालय से कैसे जुड़ पाएंगे।

अपने बच्चों के साथ प्रीति श्रीवास्तव


मुझे गर्व है कि मैं ऐसे कॉलेज की छात्रा रहीं जहां पर बड़ी बहन जी के मार्गदर्शन में अन्य शिक्षक भी अपने सभी विद्यार्थियों पर अपने बच्चों की तरह ध्यान देते थे और अपने अनुशासन, प्रेम और अपनी विद्वता से हम सबका व्यक्तित्व निखारे। हम सब के सच्चे पथ प्रदर्शक इन शिक्षकों समेत आज टीचर्स डे के दिन मैं अपनी बड़ी बहन जी को दिल से याद करती हूं और उन को श्रद्धा सुमन अर्पित करती हूं।

(प्रीति श्रीवास्तव बतौर सहायक अध्यापक पूर्व माध्यमिक विद्यालय रन्नो जौनपुर, उत्तर प्रदेश में कार्यरत है.)

About the author: Abhishek Ranjan

Abhishek Ranjan is the Founder and Director of SarkariSchool.IN

2 comments to “उसूलों और सिद्धांत की पक्की विद्या पाठक जी”

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  1. Maneesha Shukla - September 8, 2020 Reply

    हमारी बड़ी मौसी थीं। हम लोगों की पढ़ाई में उनका पूरा योगदान है। उनके हांथ का बनाया आटे का हलवा लाजवाब होता था।उनका प्यार और मार दोनों का स्वाद मैंने चखा है। मुझे खुशी है उनका रिटायरमेंट मेरे कक्षा १२ पास होने के साथ-साथ हुआ। मैं हमेशा उन्हें याद करती हूं।

    • Priti srivastava - September 9, 2020 Reply

      दी मुझे ये पता नहीं था अन्यथा आप से ही उनकी pic मांगती कल बहुत प्रयास किया मगर फोटो नहीं मिली बड़ी बहन जी की ।
      यदि आपके पास हो तो plz मुझे भेजें या फेसबुक पर लगाकर मुझे tag करें । आभार ।

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