कठिन परिश्रम और संघर्ष ने बदल दी मेरे विद्यालय की तस्वीर

नज़र लक्ष्य पर थी। गिरे और संभलते रहे। हवाओं ने पूरा ज़ोर लगाया। फिर भी चिराग़ जलते रहे।

जुलाई 2016 आज भी याद है। प्रमोशन लेकर जब नये विद्यालय में कदम रखा तो मन मे यही विचार थे कि ये विद्यालय पहले दोनों विद्यालयों से अच्छा होगा। पर ये क्या? यहाँ का हाल पिछले ही विद्यालयों जैसा! टूटी – फूटी बिल्डिंग, चारों तरफ़ गंदगी का अंबार, गिनती के कुछ बच्चे। सब कुछ अस्त व्यस्त।

कहने को तो विद्यालय में 5 कमरे थे। खेल का परिसर भी था, जिसमें कूड़े का वर्षो पुराना डंप लगा था। कमरे ऐसे थे, जिनमें ताले लटके होने के कारण बच्चे उनमें भूत होने की बात बताते थे। सरकारी स्कूल में पढ़ाना बस पढ़ाना ही नहीं होता। पढ़ना होता है उन हालातों को, जिनमें हमारे बच्चे पढ़ रहे होते है।

बच्चे विद्यालय में रुकते नहीं थे। उन्हें आकर्षित करने जैसा विद्यालय में कुछ था ही नहीं।
तभी सामने से कुछ अराजक तत्व अपनी बोतल और ताश के पत्ते लेकर विद्यालय के एक कोने में जा बैठे। मैं सोचने लगी कैसे लोग है! ज़रा भी लिहाज़ नहीं! जब रोकना चाहा तो जवाब मिला- “तुम अपना काम करो। हमें हमारा काम करने दो।” सोचने लगी अरे ये सब क्या है? जिधर नज़र दौड़ाती कूड़ा और गंदगी …सालों से विद्यालय परिसर में महिलायें कूड़ा कचरा डालती थी, जो अब एक चट्टान सा प्रतीत हो रहा था। बड़ी बड़ी कटीली झाड़ियां। हैंड पम्प पर महिलायें कपड़े धोती थी। बच्चों को नहलाती। मना करने पर जवाब मिलता- “सरकारी स्कूल है। तुम्हारा घर नहीं”। कोई कहता- “तुम तो अब आयी हो। हम सालों से यही आते है”। कुछ लड़के उसी परिसर में बैट-बॉल खेलते और गेंद आकर मुझे लग जाती। माना किया तो फिर वैसा ही जवाब- “तुम्हारे जैसी कितनी टीचरें आयी और चली गयीं। तुम क्या चीज़ हो “।

कई दिनों तक सो नहीं पायी। सोचती रही कैसे करूँ? क्या करूँ? अगली सुबह विद्यालय आयी तो देखा, बरामदे में बड़े बड़े ईंटे पत्थर का ढेर और मेरे नन्हे-मुन्ने बच्चे उसे बिनने में लगे हैं। सिद्धार्थ ने बताया- मैडम ये सब यहाँ के लड़कों ने किया है। वो पत्थर मार मारकर सब कुछ तोड़ देना चाहते है। मेरे मुँह से बस यही निकला- पर क्यों! इससे उन्हें क्या फायदा? मैंम आप उनको यहाँ आकर खेलने और गाना सुनने को मना करती है न इस लिये, पीछे से सानिया बोली।


अगले दिन से ही परिसर की सफ़ाई का काम शरू करवाया। 6-7 लेबर मिलकर उस कूड़े की चट्टान को हटाने में लग गये। जैसे जैसे कूड़ा खुदता, उसमें से सांप और जहरीले कीड़े निकलते जाते। खुद को और बच्चों को बचाती रही। उनका मनोबल बढ़ाती रही। रसोइयों को लेकर आस- पास के सभी घरों में गयी और आईन्दा कूड़ा डालने को मना करती रही। 150 घरों में जाकर बच्चों के नामंकन के लिये संपर्क किया। अभिभावकों को विश्वास दिलाया कि पढ़ाई अब अच्छी होगी। 17 अगस्त 2016 कुछ भले आदमियों के सहयोग से विद्यालय की बंजर जमीन में जुताई का कार्य प्रारंभ हो गया। बस यही सोचने लगी कैसे इस बंजर जमीन को उपजाऊ बना दूँ। विद्यालय की रसोइयों ने मुझे रोका बोली- “यहाँ वर्षो से कोई पौधा नहीँ हुआ। माटी ही बंजर है मैडम”।

पर हम कहाँ मानने वाले। विद्यालय में ही पढ़ने वाले एक बच्चे आमिर के पिताजी मिट्टी डालने का काम करते थे। उनका सहयोग लेकर हमनें अच्छी उपजाऊ मिट्टी डलवाई और एमडीएम की क्यारियाँ बनाई। बच्चे और हम उस दिन काफ़ी ख़ुश थे।

दुःख तो तब हुआ, जब दशहरे को छुट्टियां होने के कारण कुछ अराजक तत्व व शरारती लड़को ने हमारी बनाई सारी क्यारियों को और पौधों को ही नष्ट कर दिया। यही नहीं मेरी गाड़ी का शीशा फोड़ डाला। अब पुलिस को बुलाने के सिवा मेरे पास कोई चारा नहीं था। जैसे ही कोतवाली में शिकायत दर्ज की, कुछ धमकी भरे फोन कॉल्स बार बार आने लगे और विद्यालय छोड़ कर चली जाओ बस यही धमकाते रहे।

पर कहते है न! कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। मैने सोच लिया था विद्यालय को रंग बिरंगे फूलों से सजा कर ही रहूँगी। मैं बहानो में विश्वास नहीं रखती। जीवन की समस्याओं को सुलझाने में कठिन परिश्रम को प्रमुख कारक मानती हूँ। फिर हमने विद्यालय में एक ग्रीन आर्मी का गठन किया। विद्यालय को हरा भरा और आकर्षित बनाना इस आर्मी का उद्देश्य था। ये नन्हे ग्रीन आर्मी के बच्चे अब गाँव के किसी भी घर के सामने कूड़ा कचरा नहीं जमा होने देते। छायादार पेड़ लगाते। विद्यालय में रोपित पौधों की छुट्टी के बाद भी देखभाल करते। ‘आओ हम संकल्प ले, धरती को हरा बनाएंगे’ …’ग्रीन आर्मी का यही इरादा, पर्यावरण बचाएंगे’- इस नारे को लगते हुए प्रत्येक माह के दूसरे शनिवार गाँव मे रैली भी निकालते। एमडीएम की क्यारियों में उगी सब्ज़ियों को देख माता समिति की सदस्या उषा देवी के वो दो शब्द -‘मैडम तुमने तो जंगल मे मंगल कर दिया। अब कभी यहाँ से नहीं जाना’।


14 जुलाई 2018 हमारे जिला अधिकारी(डीएम) श्री आंजनेय कुमार व बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) शिवेंद्र प्रताप सिंह का विद्यालय में आगमन हुआ। विद्यालय का प्रिंट रिच एनवायरमेंट, कक्षा में सजे लाइन से टीएलएम, छात्रों से भरा विद्यालय, बोलती हुई दीवारे, चारों तरफ़ हरियाली, रंग बिरंगे फूल, सुसज्जित भोजन कक्ष, क्यारियों में उगी खूब सारी सब्ज़ियां, विद्यालय परिसर में गाँव वालों की भीड़। तभी जिला अधिकारी सर ने बीएसए सर से पूछा- ‘यहाँ का प्रधानध्यापक कौन है’? बीएसए सर ने घूमकर मेरी तरफ़ इशारा किया। बच्चों ने एक के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम व हाज़िर जवाबी से सभी का मन मोह लिया। सभी बच्चे उनको अपना इंट्रोडक्शन अंग्रेज़ी में देते रहे। जिला अधिकारी ने हमारे द्वारा शुरु किये प्रोजेक्ट समझ का विमोचन किया। मेरे लिये सबसे बड़ी ख़ुशी उनके द्वारा विद्यालय प्रोफ़ाइल में – ‘Salute, One Man Army!’ जैसे कमेंट्स लिखे। और तभी सारा विद्यालय परिसर तालियों से गूँज उठा….!

मुझे यही सीख मिली कि कड़ी मेहनत और समर्पण ही सफलता का एक मात्र मंत्र है। हम अपनी मेहनत से असंभव को संभव बना सकते है।

आसिया फ़ारूक़ी
(राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका,फतेहपुर, उत्तर प्रदेश )

About the author: Abhishek Ranjan

Abhishek Ranjan is the Founder and Director of SarkariSchool.IN

2 comments to “कठिन परिश्रम और संघर्ष ने बदल दी मेरे विद्यालय की तस्वीर”

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  1. प्रमोद दीक्षित'मलय' - July 31, 2020 Reply

    सरकारी स्कूल यह बदलती तस्वीर प्रेरित करती है। समुदाय के टूटे विश्वास की बहाली की पहल है। बहुत खुशी हुई संघर्ष की यह गाथा पढ़कर। यह सफलता की कहानी अन्य शिक्षक साथियों को कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने, चुनौतियों से जूझने और बाधाओं से लडने की ऊर्जा और शक्ति प्रदान करेगी। एकल विद्यालय होने के बावजूद शिक्षिका द्वारा एक अस्त व्यस्त स्कूल को ठीक करं माडल बना दूना उनके समर्पण, जज्बा और जुनून का परिचायक है। आपने उनकी यह विकास की संघर्ष गाथा यहां उपलब्ध कराई, एतदर्थ आभार।
    आसिया फारूकी जैसे टीचर प्रकाश स्तम्भ होते हैं, ये कोहिनूर हीरे हैं जिनकी आभा से साधक अपना कर्त्तव्य पथ खोज लेंगे।
    सादर
    प्रमोद दीक्षित मलय
    शिक्षाविद्

  2. Dexter Bree - June 2, 2021 Reply

    A fascinating discussion
    is definitely worth comment. There’s no doubt that that you need to write more about this topic,
    it may not be a taboo matter but generally people
    do not talk about
    these topics. To the next!
    Cheers!!

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