मेरे शिक्षक मेरे गौरव ही नही, मेरे भविष्य भी है : नितेश शर्मा
कोरोना के समय शिक्षा से दूर है और टेक्नोलॉजी के सहारे है। लेकिन मेरा मानना है कि टेक्नोलॉजी एक उपकरण है, परन्तु बच्चों को प्रेरित करने के लिए टेक्नोलॉजी के मुकाबले एक आदर्श शिक्षक बहुत महत्वपूर्ण है।
एक विद्यार्थी के जीवन में माता पिता के बाद एक शिक्षक की अहम भूमिका होती है । एक शिक्षक ज्ञान , समृद्धि और प्रकाश का बड़ा स्रोत होता है जो एक विद्यार्थी के जीवन को मार्गदर्शित करने में सदैव नि:संकोचित रहता है। अर्थात् एक व्यक्ति हो शिष्य के मन में सीखने की इच्छा जाग्रत कर सके, वहीं सही मायने में एक शिक्षक के पदवी ग्रहण कर सकता है। शिक्षक का अर्थ भी यही होता है कि –
शि- शिखर तक ले जाने वाला
क्ष – क्षमा की भावना रखने वाला
क – कमजोरी दूर करने वाला
“शिक्षक दिवस विशेष ” विषय को मध्य नजर रखते हुए शिक्षकों का मेरे जीवन में महत्व / शिक्षकों द्वारा मेरे जीवन में आए बदलावों के बारे में वर्णन करने जा रहा हूं ।
सही मायने में मेरे जीवन की शिक्षा कक्षा 6 से राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय किशोरपुरा सीकर में प्रवेश करने के उपरांत प्रारंभ हुई। कक्षा 6 से पहले में स्कूल जाने के नाम से ही छिप जाता था, लेकिन कक्षा 6 में प्रवेश के उपरांत मेरा परिचय हुआ देवराज जी यादव (अंग्रेजी अध्यापक) और रामकुमार जी गुर्जर (गणित अध्यापक) से, जो की मेरे लिए आदर्श शिक्षक थे। उनके अथक प्रयासों से मेरे जीवन में काफी बदलाव हुए। जहां मैं कक्षा का सबसे कमजोर बच्चा माना जाता था, उनकी अभिप्रेरणा से मैं कक्षा के होशियार बच्चों की श्रेणी में आने लगा।
उनकी प्रेरणा का मेरे जीवन में सबसे बड़ा बदलाव यह था कि मैंने मंच पर जाकर अभिव्यक्ति की कला सीखी, जो आज के विद्यार्थियों की सबसे बड़ी कमी है ।
इसके पश्चात कक्षा 6 व 7 में होशियार होने के कारण मुझे कक्षा का मॉनिटर बनाया गया और इस पदवी को ग्रहण करने के बाद मेरे में दंभ आ गया अर्थात् स्वयं की गलतियों को नकार कर दूसरों की गलतियों को सिद्ध करता था अर्थात् कक्षा के अन्य विद्यार्थियों को नीचा ही रखना चाहता था ।
इसी दौरान हमारे विद्यालय में नए अध्यापक विमल जी शर्मा का आगमन हुआ। उनके विद्यालय में आने के दो दिन पश्चात अर्थात् तीसरे दिन ही उन्होंने मेरे को पहचान लिया और मेरी इस कमी का अवलोकन किया। उन्होंने मुझे एक लाइन कहीं जो मुझे आज भी याद है – ” जब हम एक अंगुली दूसरे कि तरफ करते है अर्थात् दूसरे में कमी खोजते हैं तो इससे पहले बची हुई नीचे वाली चार अंगुलियां हमारी स्वयं की चार गुना कमियों के बारे में बोध कराती हैं । ” इस छोटी सी लाइन का मेरे जीवन में काफी प्रभाव पड़ा। मेरे में बदलाव हुआ और आज मै कमजोर हूँ या होशियार पर कभी भी दूसरों को आगे बढ़ते देखकर जलन महसूस नहीं करता, अपितु उनको चैलेंज मानकर मैं भी उनका अनुसरण करता हूं ।
कक्षा 6 से 8 के सफर में ही नाथू जी सांखला शिष्यों में अच्छे परिवर्तन करने वाले शिक्षक के रूप में मिले। इन्होंने मुझे किताबी ज्ञान के अलावा भी जीवन की महत्वपूर्ण इकाइयों यथा खेल – कूद , अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेना। कुछ नया सोचना और करना आदि के बारे में समझाया और उन क्षेत्रों में मेरे को कुशल करने का पूर्ण प्रयास किया और हम सफल भी रहे। इनकी प्रेरणा से में बाहर क्षेत्र में जाने से जो चीजें हमें सीखने को मिलती हैं वो मैंने अच्छे से सीखी।
इनसे मैंने सीखा की शिक्षा का अर्थ यह नहीं होता कि केवल शिक्षा ग्रहण की जाए और नौकरी प्राप्त कर ली जाए बल्कि हमे ” शिक्षित ” होकर स्वयं का व अपने परिवार का उत्थान करते हुए देश को प्रगति कराने का लक्ष्य रखना चाहिए।
मै एक होनहार शिष्य तो बन गया था परन्तु में सदैव मानसिक तनाव से ग्रस्त रहता था। अधिकांशत: सफलता प्राप्त करता था फिर भी उदास रहता था। इसी उदास स्वभाव के कारण मेरे सभी गुरुजी दुखी रहते थे परन्तु मेरे गुरुजनों (नाथू जी, विमल जी, रामकिशोर जी, रमेश जी, बीना जी, सुरेन्द्र जी और रजत जी ) के अथक प्रयास से और बार बार समझाने से मैंने उदास स्वभाव को छोड़कर हँसमुख रहना प्रारंभ किया ।
वर्तमान में मेरे आदर्श शिक्षक है – रजत जी अग्रवाल। वर्तमान में कई शिक्षक होते हैं वो केवल एक तय फॉरमैट तक ही शिक्षा देते हैं, परन्तु ये ऐसे शिक्षक हैं जो अंतर्मन के अन्धकार को मिटाकर निस्वार्थ अनिश्चित फॉरमैट में शिक्षा के साथ व्यवहारिक ज्ञान भी प्रदान करते हैं। मेरे अनुसार ये प्रेरणा के सूर्य हैं । अर्थात् वास्तव में इनके पास ज्ञान का अपार भंडार है। इन्होंने मेरे जीवन को ० से कई गुना उपर उठाया है , जिसका मैं भी अनुमान नहीं लगा सकता। मैं चाहूंगा कि इनके जैसे व्यक्तित्व आज के प्रत्येक अध्यापक में होना चाहिए । इनका प्रेरणात्मक कथन ” संतुष्ट सूअर से तो असंतुष्ट मनुष्य बनना कहीं गुना बेहतर है ” मेरे जीवन का सबसे बड़ा बदलाव है और इनके बारे में तो मैं कितना भी कहता जाऊं कम ही होगा।
मेरे एक और आदर्श शिक्षक है रामकिशोर जी शर्मा, जिन्होंने मुझे सदैव प्रेरित किया। इन पर मुझे बहुत गर्व है क्योंकि एक शिक्षक होते हुए भी ये स्कूल की साफ सफाई का कार्य करते थे और आज भी करते हैं। ये विद्यार्थियों को फोन करके प्रेरित करते थे । मुझे गर्व है कि एक सामान्य शिक्षक होते हुए भी ये स्कूल समय के बाद भी स्कूल में कार्य करते हैं।
इनके अलावा भी अन्य कई शिक्षक हैं जिन्होंने मेरे जीवन में बदलाव किया है। मैं क्षमा प्रार्थी हूं कि मैं उनका वर्णन नहीं कर पाया । इस प्रकार मैं कहने में जरा भी संकोच नहीं करूंगा कि मेरे शिक्षक मेरे गौरव ही नही, मेरे भविष्य भी है।
गुरु का संबंध केवल शिष्य को शिक्षा देने से ही नहीं होता बल्कि वह अपने प्रत्येक विद्यार्थी को जीवन के हर मोड़ पर राह दिखता है और उसका हाथ थामने के हमेशा तैयार रहता है। विद्यार्थी के मन में जाग्रत हुए हर सवाल का जवाब देता है और विद्यार्थी को हमेशा सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करता है। सफल जीवन के लिए वर्तमान युग में शिक्षा बहुत उपयोगी है जो हमें एक अच्छा आदर्श गुरु ही दे सकता है ।
किसी भी राष्ट्र का आर्थिक , सामाजिक व संस्कृतिक विकास उस देश की शिक्षा पर निर्भर करता है। अगर राष्ट्र कि शिक्षा नीति अच्छी है तो उस देश को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता और किसी राष्ट्र की शिक्षा नीति ही अच्छी नहीं होगी तो वहां की प्रतिभा दबकर ही रह जाएगी। बेशक किसी भी राष्ट्र की शिक्षा नीति बेकार हो परन्तु एक शिक्षक बेकार शिक्षा को भी बेहतर शिक्षा में तब्दील करने की क्षमता रखता है ।
मैं अपने शब्दों को विराम देने से पहले उन सभी शिक्षकों को सादर नमन करना चाहूंगा जिन्होंने मुझे शिक्षा ज्ञान दिया है, नैतिकता प्रदान की है ।
कोरोना के समय शिक्षा से दूर है और टेक्नोलॉजी के सहारे है। लेकिन मेरा मानना है कि टेक्नोलॉजी एक उपकरण है, परन्तु बच्चों को प्रेरित करने के लिए टेक्नोलॉजी के मुकाबले एक आदर्श शिक्षक बहुत महत्वपूर्ण है।
(नितेश शर्मा राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय किशोरपुरा सीकर (राजस्थान) में 10वीं कक्षा में पढ़ते है और sarkarischool.in द्वारा आयोजित “मेरा शिक्षक- मेरा गौरव” विषय पर आयोजित प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था)