
सबकी प्यारी मेनन मैडम
- नेहा द्विवेदी
वह हर एक बच्चे का नाम याद रखती थीं और उसे उसके नाम से ही बुलाती थीं उस समय मैं यह देखकर आश्चर्य में पड़ जाती थी कि मैडम को इतने सारे बच्चों के नाम याद कैसे रहते हैं
मैंने अपने शुरुआती 10 वर्षों की शिक्षा अपने गृह नगर वाराणसी के गोपी राधा बालिका उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, रविंद्रपुरी से पूरी की।
यह निश्चित ही कई मायनों में बहुत ही बढ़िया विद्यालय था। यहां पर विद्यालय से संबंधित सभी मूलभूत आवश्यकताएं जैसे साफ पीने का पानी ; हवादार कक्षाएं ,खेल का मैदान आदि सभी मौजूद थी। पर सबसे बड़ा धन जो यहां से प्राप्त हुआ था वह था‘संस्कार‘ , जो सिर्फ और सिर्फ एक अध्यापक ही दे सकता है !
विद्यालय का प्रांगण बहुत साफ सुथरा हुआ करता था, जहां हम रोज अपनी प्रार्थनाएं करके दिन की शुरुआत करते थे यहां बहुत सी अध्यापिकाएं पढ़ाती थीं और सभी एक से बढ़कर एक विषय की ज्ञाता थीं। इनमें से कुछ नाम मैं लेना चाहूंगी- माया सिंघल मैम जो हमें हिंदी पढ़ाती थीं। मधु शाहनी मैम जो गृह विज्ञान की अच्छी ज्ञाता थीं। कुसुम सेठ मैडम रसायन विज्ञान की अध्यापिका मनोरमा मैम गणित अध्यापिका छाया मैडम अंग्रेजी अध्यापिका एवं वीरा सिंह मैम, अनीता पाल जो क्रमशः मेरी विज्ञान और कला की अध्यापिका थीं।

स्वर्गीय शीला बहनजी जो हमें बड़े ही रोचक तरीके से इतिहास पढ़ाया करती थी। यह हमारी कुछ बहुत ही प्रिय अध्यापिका थी पर इनमें भी मेरी सबसे प्रिय अध्यापिका थीं श्रीमती उषा मैडम। वह कक्षा 8 में मेरी कक्षा अध्यापिका थीं। भय एवं तनाव रहित शिक्षा का वातावरण किसे कहते हैं, यह याद आता है जब मैडम हमें पढ़ाया करती थीं। उषा मैडम मैडम का व्यक्तित्व सादगी से भरा है मैंने आज तक उनके चेहरे पर क्रोध आक्रोश और चिड़चिड़ेपन के भाव कभी नहीं देखे क्या कोई व्यक्ति हर परिस्थिति में शांत बना रह सकता है विशेषकर जब वह बच्चों के साथ हो यह यह अपने आप में अद्भुत है परंतु मेनन मैडम के साथ हमने ऐसा ही अनुभव किया।
दूसरी सबसे बड़ी बात यह थी कि जहां हम लोग इस बात से डरे रहते थे कि दूसरे विषय के काम पूरे हुए हैं या नहीं। वही मिलन मैडम की कक्षा में ऐसा बिल्कुल नहीं था। वह हर एक बच्चे का नाम याद रखती थीं और उसे उसके नाम से ही बुलाती थीं उस समय मैं यह देखकर आश्चर्य में पड़ जाती थी कि मैडम को इतने सारे बच्चों के नाम याद कैसे रहते हैं जबकि हमारी कक्षा में 50-60 बच्चे हुआ करते थे और यह एक काफी बड़ी कक्षा थी। अब समझ आता है ऐसा इसलिए संभव हुआ क्योंकि वह बच्चों के साथ अच्छा संपर्क स्थापित कर लेती थीं। प्रत्येक बच्चे को वह अपना मानती थीं और उनके अध्यापन में भी एक अपनापन था। उन्होंने छात्राओं को भय एवं तनाव मुक्त वातावरण दिया जिसमें प्रत्येक बच्चा प्रश्न पूछ सकता था। प्रत्येक बच्चे को अपनी बात कहने की स्वतंत्रता थी।

मैडम के चेहरे पर सदैव एक मुस्कान खिली रहती थी, जो हमें उनके और करीब ले आती थी। जहां तक मुझे याद है उनकी आवाज बहुत ही मधुर थी और वह एक बहुत अच्छी गायिका भी थीं। कक्षा 8 के गणित विषय के कुछ बहुत कठिन प्रकरण जैसे क्षेत्रफल, आयतन और ज्यामिति के अन्य प्रकरण हमने उनसे ही सीखे और गणित के इन पहलुओं का पहली बार सामना मिलन मैडम के मार्गदर्शन में ही हुआ। मिलन मैडम के अंदर हमें एक ममतामई मां दिखाई देती थी और मैं उनकी सदैव कृतज्ञ रहूंगी क्योंकि उनकी प्रेरणा से मैं एक गणित की शिक्षिका बन सकी।
मैं चाहूंगी की मिलन मैडम की तरह ही मैं बच्चों को सीखने का खुला वातावरण प्रदान कर सकूं जिसमें भय और तनाव से मुक्त होकर अपनी पढ़ाई करें एवं अन्य विषयों को सीखें उन्हीं की तरह मैं भी बच्चों के साथ एक अच्छा संवाद स्थापित बनाए रखना चाहूंगी।
(नेहा द्विवेदी जी बतौर सहायक अध्यापिका प्राथमिक विद्यालय परमंदापुर, आराजी लाइन, वाराणसी में कार्यरत है)